ROHAN ROTE

ROHAN ROTE

Sep 15, 2011

Rohan Rote


Aug 6, 2010

Very motivating & Well Said words.........

Napoleon.... ....
"The world suffers a lot. Not because of the violence of bad people,
But because of the silence of good people!"


Einstein
.........
"I am thankful to all those who said NO to me
Its Because of them I did it myself.."


Abraham Lincoln
.........
"If friendship is your weakest point then you are the strongest person in the world"


Shakespeare
..........
"Laughing Faces Do Not Mean That There Is Absence Of Sorrow!
But It Means That They Have The Ability To Deal With It".


Willian Arthur
.........
"Opportunities Are Like Sunrises, If You Wait Too Long You Can Miss Them".


Shakespeare
.....
"Never Play With The Feelings Of Others Because You May Win The Game But The Risk Is That You Will Surely Loose The Person For Life Time".


Hitler
.....
"When You Are In The Light, Everything Follows You,
But When You Enter Into The Dark, Even Your Own Shadow Doesnt Follow You."


Shakespeare
............ .
"Coin Always Makes Sound But The Currency Notes Are Always Silent.
So When Your Value Increases Keep Yourself Calm Silent"


John Keats....... .

"It Is Very Easy To Defeat Someone, But It Is Very Hard To Win Someone"

Jun 30, 2010

व्यवहार मे ढृडता कैसे लाए ?

                   व्यवहार मे ढृडता लाने का अर्थ यह कतई नही है कि आप दुसरो पर चिल्‍लाए, रोब जमाएँ, गुस्सा करें, दोष लगाएं या उन्हे भयभीत करें । दृढ होने का अर्थ है कि आप अपने पक्ष मे खडे हैं और साथ ही दुसरों के अधिकारो का भी हनन नही कर रहे है  अर्थात स्पष्‍ट शब्दों मे अपनी बात कहना या सब के सामने रखना। यह आपकी भावनाओं, इच्छाओं व विचारों का ईमानदार प्रस्तुतिकरण होता है। इसे प्राय: आपके आत्म-सम्मान व आत्म-छवि से भी जोडा जाता है। 

                   बचपन मे ही हमारा निजी रवैया / ढंग विकसित हो जाता है। उसपर हमारे परिवार, माहौल, और यारो-दोस्तो का भी असर पडता है। यदि बचपन मे आपको बडे अनुशासन मे रखें तो हो सकता है आप उन्ही विचारो को जीवन मे आगे चल कर पेश करें। जब भी आप किसी बात के लिए 'ना' कहना चाहे तो सपष्‍ट शब्दो मे कहें । उस समय शर्मिंदा हो कर या यह सोच कर कि सामने वाला नाराज़ होगा, माफी मांगने की जरुरत नही है। कई बार दृढता और आत्म-सम्मान की कमी को आपस मे जोड कर देखा जाता है । आत्म-सम्मान की कमी होने से इंसान अपने आप को हीन महसूस करता है और वह सब के सामने बोल नही पाता। यह मनुष्य को कई तरह से प्रभावित करती है । कई लोग इसकी वजह से गुस्सैल और आक्रमक हो जाते है । यही बर्ताव उन्हे और भी बुरा बना देता है । कुछ मामलो मे बीती बातें याद करके, दृढता अपनाने से हिचकते हैं क्योकि वह दुसरो को नाराज़ नही करना चहते।

                   यदि आपने दृढ रवैया नही अपनाया तो आपके साथ या नीचे काम करने वाले आपकी योग्यताओ व रवैये को गंभीरता से नही लेगें । यदि मीटिगं आदि मे आपने दृढता से अपना पक्ष नही रखा या दुसरो की अप्रसंन्नता के भय से अपना मत व्यक्त नही किया तो बॉस को आपकी योग्यता पर संदेह होने लगेगा। इस तरह से दूसरे लोग आसानी से आपसे फायदा उठा सकते हैं और आपकी योग्यता पर संदेह कर सकते है। कुछ लोग बिना किसी वजह के ही माफी माँगते रह्ते है। यह उनकी अपनी शक्तिहीनता का संकेत होता है। जब तक आपने कोई गलती नही की, तो केवल एक 'साँरी' आपको दोषी बना सकता है। किसी भी परेशानी मे अपने परिवार व दोस्तो की मदद लें । दायित्व व परिस्थितियो से मुँह न मोडें। लगातार अभ्यास से अपने भीतर दृढता पैदा करें। यदि आप कही दृढता नही दिखा पाते तो शर्मिन्दा होने की बजाए अपने-आपसे वादा करें कि आप अगली बार ऐसा नही होने देंगे। 

                    मनचाहा फल मिले या नही, अपने आपको प्रोत्साहित करते रहें। बेचैनी और व्याकुलता से बचें। अतीत से छूट्कर जीवन की नई यात्रा मे उसका साथ दें। अपने हृदय से सारी घृणा निकाल कर इसे प्रेम से लबालब भर दे, हालाकि यह इतना आसान नही है परन्तु लगातार प्रयास से संभव है। ऐसा करने पर ही आप स्वंय को मुक्‍त अनुभव कर पाएगे। आप जब भी अपना तर्क प्रस्तुत करें तो मरियल स्वरों में कहने के बजाए पूरे दम खम से अपनी बात कहें । बात करते-करते जहां वाक्य खत्म होने वाला हो वहां अपने स्वर को सम पर ले आएँ। किसी से बात करते समय बार-बार सिर न हिलाए, ज़रुरत से ज्यादा न मुस्कुराएँ, अपनी गर्दन एक ओर न झुकाए और न ही अपनी आंखे फेरें, सीधे नेत्रो का संपर्क बना रहे। गरिमामयी, आरामदायक मुद्रा मे बैठे । ध्यान रहे कि आपके चेहरे के भाव आपकी बात से मेल खानी चाहिए। दुसरो की बात को ध्यान से  सुने व उन्हे ऐहसास दिलाएँ कि आप उन्हे सुन रहे है। यदि कोई स्पष्‍टीकरण चाहते है तो प्रश्‍न पूछे। अपनी शक्ति को कम न करें। जब भी आप बात करें तो ध्यान रहे कि आपकी पूरी बात स्पष्‍ट्ता से सामने वाले तक पहुँच रही है या नही?

भोजन की सही विधि जानिए

जीवन मे सुख-शान्ति व समृधि प्राप्‍त करने के लिए स्वस्थ शरीर की नितांत अवश्यकता है क्योकि स्वस्थ शरीर मे ही स्वस्थ मन और विवेकवती कुशाग्र बुद्धि प्राप्‍त हो सकती है  स्वस्थ मनुष्य को स्वस्थ रहने के लिए उचित निद्रा,श्रम, व्यायाम और संतुलित आहार अति अवश्यक है। पाचों इन्द्रियों के विष्य के सेवन में की गई गलतियों के कारण ही मनुष्य रोगी होता है। इस मे भोजन की गलतियों का सब से अधिक महत्व है। अधिकांश लोग भोजन की सही विधि नही जानते। गलत विधि से गलत मात्रा मे अर्थात अवश्यकता से अधिक या बहुत कम भोजन करने से या अहितकर भोजन करने से जठराग्‍नि मंद पड जाती है, जिससे कब्ज रहने लगता है। तब आँतों मे रुका हुआ मल सड्कर दूषित रस बनाने लगता है। यह दूषित रस ही सारे शरीर मे फैलाकर विविध प्रकार के रोग उत्पन्‍न करता है। शुद्ध आहार से मन शुद्ध रहता है। साधारणत: सभी व्यक्‍तियों को आहार के कुछ नियमों को जानना अत्यंत आवश्यक है। जैसे-
  • बिना भुख के खाना रोगों को आमंत्रित करता है। कोई कितना भी आग्रह करे या आतिथ्यवश खिलाना चाहे पर आप सावधान रहें। सही भुख को पह्चानने वाले मानव बहुत कम होते हैं भूख न लगी हो फिर भी भोजन करने से रोगों की संख्या बढ्ती जाती है।एक बार किया हुआ भोजन जब तक पूरी तरह पच न जाए, खुलकर भुख न लगे दुबारा भोजन नही करना चाहिए ।  एक बार आहार ग्रहण करने के बाद दूसरी बार आहार ग्रहन करने के बीच कम से कम छ: घंटे का अन्तर रखना चाहिए । भोजन के प्रति रुचि हो तब समझना चाहिए कि भोजन पच गया है, तभी भोजन ग्रहन करना चाहिए।
  • रात्री के आहार के पाचन में समय़ अधिक लगता है इसलिए रात्री के प्रथम प्रहर में ही भोजन कर लेना चाहिए। शीत ऋतु मे रातें लम्बी कारण सुबह भोजन जल्दी कर लेना चाहिए और ग्रर्मियों मे दिन लम्बे होने के कारण सायंकाल का भोजन जल्दी कर लेना उचित है।
  • अपनी प्रकति के अनुसार उचित मात्रा मे भोजन करना चाहिए। आहार की मात्रा व्यक्ति की पाचनशक्‍ति व शारीरिक बल के अनुसार निर्धारित होती है। स्वभाव से हलके पदार्थ जैसे कि चावल, मूँग, दूध अधिक मात्रा मे ग्रहन करना चाहिए परंतु उड्द, चना तथा पिट्टी के पदार्थ स्वभावत: भारी होते है, जिन्हे कम मात्रा मे लेना उपयुक्‍त रह्ता है।
  • भोजन स्‍निग्ध  होना चाहिए। गर्म भोजन स्वादिष्‍ट होता है, पाचनशक्‍ति को तेज करता है और शीघ्र पच जाता है। ऐसा भोजन अतिरिक्‍त वायु और कफ को निकाल देता है। ठंडा या सूखा भोजन देर से पचता है। अत्यंत गर्म अन्‍न बल का हास करता है। स्‍निग्ध भोजन शरीर को मजबूत बनाता है, उस का बल बढता है और वर्ण मे भी निखार लाता है।
  • चलते हुए, बोलते हुए अथवा हँसते हुए भोजन नही करना चाहिए।
  • दूध के झाग बहुत लाभदायक होते है। इसलिए दूध को खूव उलट पुलटकर, बिलोकर, झाग पैदा करके पीऐं। झागों का स्वाद ले कर चूसें। दूध मे जितना ज्यादा झाग होगें, उतना हे वह लाभदायद होगा।
  • चाय या काफी सुबह खाली पेट कभी न पिऐ, दुशमन को भीन पिलाऐं ।
  • एक सप्‍ताह से अधिक पुराना आटे का उपयोग स्वास्थय के लिए लाभदायक नही है ।
  • स्वादिष्‍ट अन्‍न मन को प्रसन्‍न करता है, बल व उत्साह बढाता है तथा आयुष्य की वृद्धि करता है, जबकि स्वादहीन अन्‍न इसके विपरित असर करता है।
  • सुबह सुबह भरपेट भोजन न करके हल्का फुल्का नाश्ता ही करें।
  • भोजन करते समय चित्‍त को एकाग्र रख कर सबसे पहले मधुर, बीच  मे खट्‍टे और नमकीन तथा अंत मे तीखे व कडवे पदार्थ खाने चाहिए। अनार आदि फल तथा गन्ना भी पहले लेने चहिए। भोजन के बाद आटे के भारी पदार्थ, नये चावल या चिडवा नही खाना चाहिए।
  • पहले धी के साथ कठिन पदार्थ, फिर कोमल व्यंजन और अंत मे प्रवाही पदार्थ खाने चाहिए।
  • माप से अधिक खाने से पेट फूलता है और पेट मे से अबाज आती है। आलस होता है, शरीर भारी होता है। माप से कम खाने से शरीर दुबला होता है और श‍क्‍ति का क्षय होता है ।
  • बिना समय के भोजन करने से शक्‍ति का क्षय होता है, शरीर अशक्‍त बनता है। सिर दर्द और अजीर्ण के भिन्‍न-भिन्‍न- रोग होती हैं। समय बीत जाने पर भोजन करने से वायु से शरीर कमजोर हो जाती  है, जिससे खाया हुआ अन्‍न शायद ही पचता है। और दुबारा भोजन करने की इच्छा नही होती।
  • जितनी भूख हो उससे आधा भाग अन्न से,  पाव भाग  जल से भरना चाहिए और पाव भाग वायु के आने जाने के लिए खाली रखना चाहिए। भोजन से पूर्व पानी पीने से पाचनशक्‍ति कमजोर होती है, शरीर दुबला होता है। भोजन के बाद तुरंन्त पानी पीने से आलस्य बढ्ता है और भोजन सही नही पचता। बीच मे थोडा सा पानी पीना हीतकर है। भोजन के बाद थोडा सा छाछ पीना आरोग्यदायी है। इससे मनुष्य कभी रोगी नही होता।
  • प्यासे व्यक्‍ति को भोजन नही करना चाहिए। प्यासा व्यक्‍ति भोजन करता है तो उसे आँतों के भिन्‍न-भिन्‍न रोग होते है। भूखे व्यक्‍ति को पानी नही पीना चहिए। अन्‍न सेवन से ही भूख को शांत करना चाहिए।
  • भोजन के वाद बैठे रहने वाले के शरीर में आलस्य भर जाता है। बायीं करवट ले कर लेटने से शरीर पुष्‍ट होता है। सौ कदम चलने वाले के उम्र बढती है और दौड्ने वाले की मृत्यू उसके पिछे ही दौड्ती है।
  • रात्री को भोजन के तुरन्त बाद शयन न करें, २ घंटे के बाद ही शयन करें।