जीवन मे सुख-शान्ति व समृधि प्राप्त करने के लिए स्वस्थ शरीर की नितांत अवश्यकता है क्योकि स्वस्थ शरीर मे ही स्वस्थ मन और विवेकवती कुशाग्र बुद्धि प्राप्त हो सकती है स्वस्थ मनुष्य को स्वस्थ रहने के लिए उचित निद्रा,श्रम, व्यायाम और संतुलित आहार अति अवश्यक है। पाचों इन्द्रियों के विष्य के सेवन में की गई गलतियों के कारण ही मनुष्य रोगी होता है। इस मे भोजन की गलतियों का सब से अधिक महत्व है। अधिकांश लोग भोजन की सही विधि नही जानते। गलत विधि से गलत मात्रा मे अर्थात अवश्यकता से अधिक या बहुत कम भोजन करने से या अहितकर भोजन करने से जठराग्नि मंद पड जाती है, जिससे कब्ज रहने लगता है। तब आँतों मे रुका हुआ मल सड्कर दूषित रस बनाने लगता है। यह दूषित रस ही सारे शरीर मे फैलाकर विविध प्रकार के रोग उत्पन्न करता है। शुद्ध आहार से मन शुद्ध रहता है। साधारणत: सभी व्यक्तियों को आहार के कुछ नियमों को जानना अत्यंत आवश्यक है। जैसे-
- बिना भुख के खाना रोगों को आमंत्रित करता है। कोई कितना भी आग्रह करे या आतिथ्यवश खिलाना चाहे पर आप सावधान रहें। सही भुख को पह्चानने वाले मानव बहुत कम होते हैं भूख न लगी हो फिर भी भोजन करने से रोगों की संख्या बढ्ती जाती है।एक बार किया हुआ भोजन जब तक पूरी तरह पच न जाए, खुलकर भुख न लगे दुबारा भोजन नही करना चाहिए । एक बार आहार ग्रहण करने के बाद दूसरी बार आहार ग्रहन करने के बीच कम से कम छ: घंटे का अन्तर रखना चाहिए । भोजन के प्रति रुचि हो तब समझना चाहिए कि भोजन पच गया है, तभी भोजन ग्रहन करना चाहिए।
- रात्री के आहार के पाचन में समय़ अधिक लगता है इसलिए रात्री के प्रथम प्रहर में ही भोजन कर लेना चाहिए। शीत ऋतु मे रातें लम्बी कारण सुबह भोजन जल्दी कर लेना चाहिए और ग्रर्मियों मे दिन लम्बे होने के कारण सायंकाल का भोजन जल्दी कर लेना उचित है।
- अपनी प्रकति के अनुसार उचित मात्रा मे भोजन करना चाहिए। आहार की मात्रा व्यक्ति की पाचनशक्ति व शारीरिक बल के अनुसार निर्धारित होती है। स्वभाव से हलके पदार्थ जैसे कि चावल, मूँग, दूध अधिक मात्रा मे ग्रहन करना चाहिए परंतु उड्द, चना तथा पिट्टी के पदार्थ स्वभावत: भारी होते है, जिन्हे कम मात्रा मे लेना उपयुक्त रह्ता है।
- भोजन स्निग्ध होना चाहिए। गर्म भोजन स्वादिष्ट होता है, पाचनशक्ति को तेज करता है और शीघ्र पच जाता है। ऐसा भोजन अतिरिक्त वायु और कफ को निकाल देता है। ठंडा या सूखा भोजन देर से पचता है। अत्यंत गर्म अन्न बल का हास करता है। स्निग्ध भोजन शरीर को मजबूत बनाता है, उस का बल बढता है और वर्ण मे भी निखार लाता है।
- चलते हुए, बोलते हुए अथवा हँसते हुए भोजन नही करना चाहिए।
- दूध के झाग बहुत लाभदायक होते है। इसलिए दूध को खूव उलट पुलटकर, बिलोकर, झाग पैदा करके पीऐं। झागों का स्वाद ले कर चूसें। दूध मे जितना ज्यादा झाग होगें, उतना हे वह लाभदायद होगा।
- चाय या काफी सुबह खाली पेट कभी न पिऐ, दुशमन को भीन पिलाऐं ।
- एक सप्ताह से अधिक पुराना आटे का उपयोग स्वास्थय के लिए लाभदायक नही है ।
- स्वादिष्ट अन्न मन को प्रसन्न करता है, बल व उत्साह बढाता है तथा आयुष्य की वृद्धि करता है, जबकि स्वादहीन अन्न इसके विपरित असर करता है।
- सुबह सुबह भरपेट भोजन न करके हल्का फुल्का नाश्ता ही करें।
- भोजन करते समय चित्त को एकाग्र रख कर सबसे पहले मधुर, बीच मे खट्टे और नमकीन तथा अंत मे तीखे व कडवे पदार्थ खाने चाहिए। अनार आदि फल तथा गन्ना भी पहले लेने चहिए। भोजन के बाद आटे के भारी पदार्थ, नये चावल या चिडवा नही खाना चाहिए।
- पहले धी के साथ कठिन पदार्थ, फिर कोमल व्यंजन और अंत मे प्रवाही पदार्थ खाने चाहिए।
- माप से अधिक खाने से पेट फूलता है और पेट मे से अबाज आती है। आलस होता है, शरीर भारी होता है। माप से कम खाने से शरीर दुबला होता है और शक्ति का क्षय होता है ।
- बिना समय के भोजन करने से शक्ति का क्षय होता है, शरीर अशक्त बनता है। सिर दर्द और अजीर्ण के भिन्न-भिन्न- रोग होती हैं। समय बीत जाने पर भोजन करने से वायु से शरीर कमजोर हो जाती है, जिससे खाया हुआ अन्न शायद ही पचता है। और दुबारा भोजन करने की इच्छा नही होती।
- जितनी भूख हो उससे आधा भाग अन्न से, पाव भाग जल से भरना चाहिए और पाव भाग वायु के आने जाने के लिए खाली रखना चाहिए। भोजन से पूर्व पानी पीने से पाचनशक्ति कमजोर होती है, शरीर दुबला होता है। भोजन के बाद तुरंन्त पानी पीने से आलस्य बढ्ता है और भोजन सही नही पचता। बीच मे थोडा सा पानी पीना हीतकर है। भोजन के बाद थोडा सा छाछ पीना आरोग्यदायी है। इससे मनुष्य कभी रोगी नही होता।
- प्यासे व्यक्ति को भोजन नही करना चाहिए। प्यासा व्यक्ति भोजन करता है तो उसे आँतों के भिन्न-भिन्न रोग होते है। भूखे व्यक्ति को पानी नही पीना चहिए। अन्न सेवन से ही भूख को शांत करना चाहिए।
- भोजन के वाद बैठे रहने वाले के शरीर में आलस्य भर जाता है। बायीं करवट ले कर लेटने से शरीर पुष्ट होता है। सौ कदम चलने वाले के उम्र बढती है और दौड्ने वाले की मृत्यू उसके पिछे ही दौड्ती है।
- रात्री को भोजन के तुरन्त बाद शयन न करें, २ घंटे के बाद ही शयन करें।
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